Sadhana Shahi

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जब तू याद न आती है (नज़्म) स्वैक्षिक प्रतियोगिता हेतु-24-Jul-2024

नज़्म

एक पल भी ना ऐसा है जब तू याद ना आती है, तेरी याद है जब आए ये आँखें नम हो जाती हैं।

तेरी बातें जब याद करूँ बीते लम्हों के साथ चलूँ, मेरा चैन अमन सब खोता है फिर भी लगती वो मोती हैं।

तेरे संग पल जो गुज़ारी थी तेरे ऊपर बलिहारी थी, तेरे आने की आस है जो लगती अंधे की जोती है।

मेरी आंँख से निकले जो आंँसू वो तो दरिया से लगते हैं, जब प्रवंचना मुझसे करती वो मुझसे सहन ना होती है।

तुझको दिल से चाहा मैंने तुझ पर सब कुछ न्योछावर की, पर तूने मुंँह को मोड़ लिया जाने क्यों कांँटे बोती है।

ये साधना तड़प के कहती है मेरे दिल की गली में लौट तू आ, आकर फिर ना वापस जाना मेरी अनमोल तू मोती है।

साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

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